बिहार चुनाव से पहले चक्रव्यूह में गिरी राजद परिवार पार्टी से लेकर गठबंधन तक में ऐसे उलझे लाल तेजस्वी, यहां पर सियासी सर गर्मी काफी तेज हो गई है।

बिहार विधानसभा चुनाव का ऐलान भले ही अभी ना हुआ हो, लेकिन यहां पर सियासी सरगर्मी काफी तेज हो गई है. आरजेडी ने सूबे में अपनी सत्ता के वनवास को खत्म करने के लिए पूरी ताकत झोंक रखा है, लेकिन एक के बाद एक ऐसे मामले आते जा रहे हैं, जिससे पार पाना मुश्किल हो रहा है. सियासी तपिश के बीच बीजेपी से मुकाबला करने की बजाए आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को अपने परिवार से लेकर पार्टी के सहयोगी दलों के साथ उलझना पड़ रहा है. ऐसे में चुनाव से पहले ही आरजेडी सियासी चक्रव्यूह में घिरी हुई नजर आ रही है.

साल 2005 में बिहार की सत्ता से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) बेदखल हुई, उसके बाद से कुछ-कुछ समय के लिए 2 बार सरकार में आई. इस दौरान आरजेडी ने दोनों ही बार नीतीश कुमार के सहयोग से सत्ता का स्वाद चखा. तेजस्वी यादव 2020 में सत्ता के दहलीज तक पहुंच गए थे, लेकिन बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के चलते सरकार बनाने से महरूम रह गए थे. ऐसे में आरजेडी इस बार सत्ता में आने की उम्मीद लगाए हुए है, लेकिन तेज प्रताप यादव के रवैए और कांग्रेस के सियासी तेवर कहीं सारे किए धरे पर पानी न फेर दे.

तेजप्रताप यादव फैक्टर
लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप को अनुष्का यादव के साथ फोटो वायरल हो जाने के बाद पार्टी और परिवार से बाहर कर दिया है, लेकिन आरजेडी के लिए यह बड़ा सियासी संकट भी खड़ा हो गया है. तेज प्रताप यादव की वजह से पार्टी की जमकर किरकिरी हो रही है. तेज प्रताप पहले से शादीशुदा हैं, उनकी एश्वर्या यादव से शादी हुई थी. हालांकि, उनके बीच विवाद चल रहा है. ऐसे में तेज प्रताप की अनुष्का यादव के साथ आई तस्वीर ने आरजेडी की चिंता बढ़ा दी है. एश्वर्या ने खुले तौर पर लालू परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.

तेज प्रताप के बहाने लालू यादव के साले और पूर्व सांसद साधु यादव भी अब खुलकर विरोध में उतर गए हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि तेज प्रताप के मामले की जानकारी लालू परिवार को पहले से थी. अनुष्का यादव ही नहीं दूसरी अन्य लड़कियों से भी तेज प्रताप के संबंध रहे हैं.

अनुष्का का भाई भी एक्टिव
इतना ही नहीं अनुष्का यादव के भाई विकास यादव ने तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से बेदखल करने के फैसले की अलोचना की. आकाश यादव ने अनुष्का के सम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष करने और लालू यादव द्वारा पहल करके विवाद को नहीं थामने पर लंबी लड़ाई लड़ने की चेतावनी दे दी है.

आकाश ने कहा कि तेज प्रताप यादव को बेदखल करने का फैसला लालू ने जल्दबाजी में लिया है. यह मुगल-ए-आजम का दौर नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र का दौर है. तेज प्रताप यादव और अनुष्का के संबंध पर आकाश ने कहा कि दोनों बालिग हैं, इस पर वो चर्चा नहीं करेंगे. दो परिवारों की इज्जत, मान-सम्मान को नीलाम किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि लालू यादव को हम लोग मानते हैं. उनसे आग्रह है कि वह पहल करें. चीजों को संज्ञान में लें. अगर समय रहते रोका नहीं गया तो यह लड़ाई दूर तक जाएगी. इस तरह पारिवारिक खींचतान का असर चुनावी रणनीति पर पड़ सकता है.

तेजस्वी के चेहरे पर सस्पेंस
आरजेडी ने बिहार चुनाव तेजस्वी यादव के चेहरे पर लड़ने का ऐलान किया है, लेकिन कांग्रेस रजामंद नहीं है. कांग्रेस तेजस्वी यादव को सीएम पद का चेहरा बनाने में हिचक रह है जबकि लालू यादव अपने बेटे को सीएम बनाने के लिए एक्सरसाइज कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस बिना सीएम चेहरे के यानि सामूहिक नेतृत्व के साथ चुनाव लड़ना चाहती है. कांग्रेस का कहना है कि चुनाव नतीजे के बाद जिस पार्टी के सबसे ज्यादा विधायक होंगे, उसका सीएम होगा.

कांग्रेस को लगता है कि तेजस्वी के चेहरे पर चुनाव लड़ने से गैर-यादव वोटों पर सियासी असर पड़ सकता है. कांग्रेस की तरफ वामपंथी दल भी तेजस्वी के नाम पर राजी नहीं है. इस तरह से तेजस्वी के चेहरे पर संस्पेंस बना हुआ है. वहीं, बीजेपी ने नीतीश कुमार की अगुवाई और चेहरे पर चुनाव लड़ने का ऐलान पहले ही कर रखा है. इस तरह लालू यादव को अपने बेटे को चेहरा बनाने के लिए मशक्कत करना पड़ रहा है.

सीट शेयरिंग बना संकट
आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन के घटक दलों की रूपरेखा बन गई है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती सहयोगी दलों को संतुलित तरीके से सीटें देना है. आरजेडी के अलावा महागठबंधन में कांग्रेस, वाम दल, मुकेश सहनी और पशुपति पारस की पार्टियां शामिल हैं. बिहार की कुल 243 सीटों में से सबसे ज्यादा सीट आरजेडी अपने पास रखना चाहती है.

आरजेडी 150 से ज्यादा सीट पर खुद चुनाव लड़ना चाहती है जबकि कांग्रेस को 30 से 40 सीट ही देना चाहती है. 30 सीट ही लेफ्ट दलों को भी देने के मूड में है तो मुकेश सहनी की पार्टी के 8 से 10 सीट और पशुपति पारस की पार्टी को भी ऐसे ही पांच से छह सीट देने का मन बनाया है.

जबकि कांग्रेस की कोशिश 60 से 70 सीटों पर लड़ने की है. कांग्रेस ने बिहार में सीटों की संख्या से ज्यादा जीत की संभावना वाली सीटों को तरजीह देने का मन बनाया है. वह उन सीटों पर लड़ने का प्रयास करेगी, जहां मजबूत स्थिति में है. कांग्रेस की नजर दलित और मुस्लिम सीटों पर है, जिसे आरजेडी किसी भी सूरत में छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. इस तरह अगर सीट बंटवारे में संतुलन नहीं बना, तो अंदरूनी खींचतान से महागठबंधन कमजोर पड़ सकता है.

CM नीतीश-PM मोदी की जोड़ी
बिहार में आरजेडी के सामने सबसे बड़ी चुनौती नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की जोड़ी है. नीतीश 2005 से बिहार की सत्ता की धुरी बने हुए हैं, उनके चेहरे को आगे करके बीजेपी चुनावी जंग फतह करती रही है. नीतीश कुमार के साथ कम से कम 15 से 20 फीसदी वोट अपना है,

जिसमें गैर-यादव ओबीसी, अतिपिछड़ी जातियां और महिलाएं हैं. नीतीश के साथ पीएम मोदी की जोड़ी जब सियासी मंच पर नजर आती है तो चुनावी फिजा ही बदल जाती है.

पहलगाम आतंकी हमले के बाद पीएम मोदी ने बिहार की धरती से ही पाकिस्तान को सीधी चेतावनी दी थी और फिर उस पर कार्रवाई भी करके भी दिखाया. पीएम मोदी सियासी फिजा को अपनी तरफ मोड़ना जानते हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहला चुनाव बिहार में है. ऐसे में पीएम मोदी की हर रैली में आतंकवाद को मिट्टी में मिलाने और पाकिस्तान को सियासी सबक सिखाने की बात करते नजर आंएगे. इस तरह तेजस्वी कैसे नीतीश-मोदी की जोड़ी से मुकाबला कर पाएंगे.

ओवैसी-पीके का प्रभाव
बिहार में आरजेडी के लिए अगली सबसे बड़ी चिंता असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी है. ओवैसी ने इस बार बिहार की 50 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है, जो आरजेडी के मुस्लिम वोटबैंक के समीकरण को बिगाड़ सकती है. 2020 में सीमांचल की मुस्लिम बहुल पांच सीटें ओवैसी जीतने में कामयाब रहे, जिसमें 4 विधायक बाद में आरजेडी में शामिल हो गए. इस बार मुस्लिम बहुल इलाके में ओवैसी फैक्टर आरजेडी ही नहीं उसके सहयोगी कांग्रेस के लिए भी चिंता का सबब बन सकते हैं.

चुनावी रणनीतिकार से सियासी पिच पर उतरे प्रशांत किशोर ने जनसुराज नाम से अपनी पार्टी बना ली है. पिछले दिनों उपचुनाव में पीके ने अपने प्रत्याशी उतारकर आरजेडी का खेल खराब कर दिया था. इसके चलते आरजेडी अपनी परंपरागत सीट भी हार गई थी. विधानसभा चुनाव में पीके ने सभी 243 सीट पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है. प्रशांत किशोर के निशाने पर बीजेपी से ज्यादा तेजस्वी यादव और आरजेडी रहती है. लालू परिवार पर जिस तरह से पीके हमले करते हैं, उसके चलते आरजेडी का खेल 2025 में खराब हो सकता है.

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